एक माँ का पश्चाताप
विनिता लड़खड़ाकर ज़मीन पर गिर गई।
“नहीं! ऐसा मत कहो, मैं सबकुछ ठीक कर दूँगी!”
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

रेणुका अपनी बेटी को गोद में उठाकर दरवाज़े की तरफ बढ़ी।
“अब तुझे किसी का सहारा नहीं मिलेगा, विनिता। न पति का, न बेटे का, और न ही अपने पापों की माफी का!”





