महल की रानी और दर्द की ज़ंजीरें
महल में आते ही रणविजय ने अपनी हवस को हक़ का नाम दे दिया।
उसकी दुनिया अब शराब, जुआ और औरतों में सिमट गई थी।
लेकिन फिर सौम्या गर्भवती हुई।
पूरा खानदान खुशी से झूम उठा, क्योंकि ठाकुर साहब की कोई औलाद नहीं थी।

अब इस राजवंश का इकलौता वारिस आ चुका था – “देव”
“पर रणविजय के लिए सौम्या अब सिर्फ अपनी शारीरिक भूख मिटाने वाला शरीर थी।”
उसका प्यार, उसकी दीवानगी बस कुछ ही सालों में खत्म हो गई।
“अब वो सारी दौलत जुआ, शराब और औरतों पर उड़ाने लगा।”
राजवंश की सारी दौलत… सब कुछ अब बस नाम के लिए था।
महल में सिर्फ पुराने टूटे खंडहर, कुछ नौकर और सौम्या की बिखरी हुई ज़िन्दगी बची थी।