HomeLove storiesजिस्म की आग और रूह का इकरार

जिस्म की आग और रूह का इकरार

रचना आईने के सामने खड़ी थी। अपनी ही परछाई को देख रही थी—कितने साल हो गए, किसी ने उसकी आँखों में डूबकर उसे चाहा ही नहीं। पति के पास ज़िम्मेदारियों की लंबी सूची थी, लेकिन दिल की बात, जिस्म की भूख और रूह का सुकून… वो सब कहीं पीछे छूट गया था।
कमरे में हल्की-सी रौशनी थी, खिड़की से आती हवा परदों को हौले-हौले हिला रही थी। लेकिन उसके दिल में जो तूफ़ान उठ रहा था, वो किसी आँधी से कम नहीं था।
वो सोच भी नहीं पाई थी कि कॉफ़ी शॉप में हुई वो पहली मुलाक़ात इतनी जल्दी उसके भीतर गहरी छाप छोड़ देगी। उसकी मुस्कान, उसकी आवाज़, और सबसे बढ़कर वो नज़रें—जो सीधे उसके दिल तक उतर गई थीं।
कुछ दिन तक दोनों का मिलना बस बातें करने तक ही सीमित रहा। कभी कैफ़े, कभी पार्क की बेंच, कभी सड़क किनारे चाय का प्याला… लेकिन हर बार उनकी नज़दीकियाँ बढ़ती रहीं।
कुछ दिन तक दोनों का मिलना बस बातें करने तक ही सीमित रहा। कभी कैफ़े, कभी पार्क की बेंच, कभी सड़क किनारे चाय का प्याला… लेकिन हर बार उनकी नज़दीकियाँ बढ़ती रहीं।

उस दिन बारिश हो रही थी। रचना ने सोचा भी नहीं था कि वो उसे छोड़ने आएगा। लेकिन जब गाड़ी का दरवाज़ा उसके सामने रुका और उसने शालीन मुस्कान के साथ कहा,
“बैठ जाओ, भीग जाओगी,”
तो रचना मना नहीं कर सकी।

गाड़ी के भीतर हल्की-सी खुशबू और खामोशी का सन्नाटा था। बारिश की बूँदें शीशे पर गिरतीं, और बीच-बीच में उसकी नज़रें रचना पर टिक जातीं।

रचना का दिल तेज़ धड़क रहा था। उसके होंठ सूखे थे, और आँखें खुद-ब-खुद झुक रही थीं। तभी उसने धीरे से कहा,
“तुम्हारी आँखें… बहुत कुछ कह देती हैं।

रचना ने धीरे से उसकी ओर देखा। उनकी आँखें मिलीं तो जैसे एक पल के लिए सब कुछ रुक-सा गया।

उसका हाथ धीरे-धीरे रचना के हाथ पर आया। ये बस एक हल्का-सा स्पर्श था, मगर रचना के जिस्म में लहरें दौड़ गईं। उसने चाहकर भी हाथ नहीं खींचा, बल्कि खुद को उसी डोर में बंधा पाया।

धीरे-धीरे उसकी उँगलियाँ रचना की हथेली पर फिसलने लगीं। और जब उसकी उँगलियों ने रचना की उँगलियों को कसकर थाम लिया, तो ये मानो अधूरी चाहत का पहला इकरार था।

फिर उसने रचना की ओर झुकते हुए फुसफुसाया,
“क्या मैं तुम्हें सच कह दूँ? तुम्हें देखते ही मैं खुद को रोक नहीं पाता।”

रचना की साँसें तेज़ हो गईं। उसके होंठ काँपे, मगर शब्द बाहर न निकल सके। उसने सिर्फ़ आँखों से हामी दी।

उसने रचना का चेहरा अपने दोनों हाथों में थाम लिया। होंठ धीरे-धीरे करीब आए, और जैसे ही वो स्पर्श हुआ, रचना की आँखों से आँसू छलक पड़े। वो किस सिर्फ़ जिस्म का नहीं था—वो उसकी तन्हाई, उसकी प्यास और उसकी अधूरी मोहब्बत का जवाब था। उस पल रचना को लगा जैसे बरसों से दबा हुआ दिल आखिरकार खुल गया हो। वो थरथराते होंठ, वो तेज़ धड़कनें और वो नम आँखे—सब मिलकर एक ही बात कह रही थीं… कि यही उसका सच्चा इकरार है।

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