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“आघोरी साधु: आखिर क्यों करते हैं स्त्री के मासिक धर्म में यौन संबंध की गुप्त साधना?”

भयानक रूप-रंग: सामाजिक बंधनों से मुक्ति की पहचान

आम नजर में, साधुओं का लंबा बाल, जाड़े, धूल-धूसरित वस्त्र और कठोर चेहरे की रेखाएँ भय का अनुभव कराती हैं।

  • त्याग और आत्मसमर्पण का प्रतीक:
    यह रूप-रंग उनके सांसारिक मोह और भौतिक इच्छाओं से दूरी बनाने का प्रमाण है।
  • भीतर छिपी दिव्यता:
    बाहरी कठोरता के बावजूद, उनके भीतर एक ऐसी आध्यात्मिक गहराई छिपी है जो उन्हें सच्ची मुक्ति का मार्ग दिखाती है। यह स्वरूप हमें यह समझाता है कि असली सुंदरता बाहरी दिखावे से परे, अंदर की शुद्धता में निहित होती है।
  • आघोरी साधु मानते हैं कि सृष्टि की हर वस्तु – चाहे वह मृत शरीर हो या समाज द्वारा अपवित्र मानी जाने वाली कोई भी चीज़ – में ईश्वर की झलक छिपी होती है।
  • बाहरी आवरण मात्र:
    जो कुछ हमें अपवित्र प्रतीत होता है, वह केवल एक आवरण है; असली दिव्यता उसके अंदर छिपी अनंत ऊर्जा में निहित होती है।
  • अनंत चक्र का हिस्सा:
    जीवन, मृत्यु, पवित्रता और अपवित्रता – ये सभी तत्व एक ही अनंत चक्र के दो पहलू हैं, जिन्हें अपनाने से हम आत्मिक मुक्ति पा सकते हैं।

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